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Aigiri Nandini lyrics in Hindi – अयिगिरि नन्दिनि महिषासुर मर्दिनि 

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“Aigiri Nandini” is a very popular devotional stotra of Goddess Durga Devi written by Guru Adi Shankaracharya. It is called as Mahishasura Mardini Stotram or Mahishasur Maridhini Sloka. This devotional song is addressed to Goddess Mahisasura Mardini, the Goddess who killed Demon Mahishasura. Mahishasura Mardini is the fierce form of Goddess Durga, where she is depicted with 10 arms, riding a lion or tiger, carrying weapons and assuming symbolic hand gestures or mudras. Get Aigiri nandini lyrics in hindi or mahishasura mardini lyrics in hindi here.

Aigiri Nandini lyrics in Hindi – अयिगिरि नन्दिनि महिषासुर मर्दिनि 

अयिगिरि नन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि हासरते
शिखरिशिरोमणितुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यगते
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते
निजभुजदण्ड निपातितखण्डविपातितमुण्डभटाधिपते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचारधुरीण महाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते
दुरितदुरीहदुराशयदुर्मतिदानवदूतकृतान्तमते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥

अयि शरणागतवैरिवधूवर वीरवराभयदायकरे
त्रिभुवन मस्तक शूलविरोधिशिरोधिकृतामल शूलकरे
दुमिदुमितामर दुन्दुभिनाद महो मुखरीकृत तिग्मकरे
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥

अयि निजहुङ्कृतिमात्र निराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते
शिव शिव शुम्भ निशुम्भ महाहव तर्पित भूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

धनुरनुसङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनक पिशङ्गपृषत्कनिषङ्गरसद्भट शृङ्ग हतावटुके
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते
धुधुकुट धुक्कुट धिन्धिमित ध्वनि धीर मृदङ्ग निनादरते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥

जय जय जप्य जये जय शब्दपरस्तुति तत्पर विश्वनुते
भण भण भिञ्जिमि भिङ्कृतनूपुर सिञ्जितमोहित भूतपते
नटितनटार्ध नटीनटनायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥

अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कान्तियुते
श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रवृते
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥

सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्लक मल्लरते
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक भिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते
सितकृत पुल्लिसमुल्लसितारुण तल्लज पल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥

अविरलगण्डगलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गज राजपते
त्रिभुवनभूषणभूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहनमन्मथ राजसुते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले
अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्भकुलालि कुले
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

करमुरलीरववीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते
निजगुणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयूखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुरदंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

विजित सहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

कनकलसत्कल सिन्धुजलैरनु सिञ्चिनुतेगुण रङ्गभुवं
भजति स किं न शचीकुचकुम्भ तटीपरिरम्भ सुखानुभवम्
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवं
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुभितासिरते
यदुचितमत्र भवत्युररि कुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥

इति श्री महिषासुर मर्दिनि स्तोत्रम् ||

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