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Surya Ashtakam in Hindi – श्री सूर्याष्टकम्

Surya Ashtakam or SuryashtakamPin

Surya Ashtakam or Suryashtakam is from Samba Purana, a vedic text that is dedicated to Lord Surya. It consists of 8 hymns praising the different qualities of Lord Surya. In the phalashruti portion of the Stotram it is said that by chanting this stotram daily one can get rid of any Graha peeda’s or malefic affects from other planets, poor can become wealthy, and childless can get a child. It goes on to say that who gives up women, oily food, alcohol, and meat on the day dedicated to the Sun, will never be touched by sickness, grief, or poverty, and will finally reach Suryaloka or reach the realm of the Sun. Get Surya Ashtakam in hindi lyrics here and chant it with utmost devotion.

सूर्य अष्टकम सांबा पुराण में है, जो भगवान सूर्य को समर्पित एक वैदिक ग्रंथ है। इसमें सूर्य की विभिन्न विशेषताओं की प्रशंसा करते हुए 8 श्लोक हैं। भजन के फलदायी भाग में कहा गया है कि प्रतिदिन इस मंत्र का जाप करने से ग्रह या अन्य ग्रहों से किसी भी तरह के बुरे प्रभाव दूर हो सकते हैं, गरीब अमीर बन सकते हैं और निःसंतान को संतान हो सकते हैं। इसके अलावा, सूर्य को समर्पित दिन, जो महिलाएं वसायुक्त भोजन, शराब और मांस को नहीं छूती हैं, उन्हें बीमारी, दुख या गरीबी से छुआ नहीं जाएगा, और अंत में उन्हें सूर्य तक पहुंच प्राप्त होगी।

Surya Ashtakam in Hindi – श्री सूर्याष्टकम् 

साम्ब उवाच ।

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ॥ १ ॥

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ २ ॥

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ३ ॥

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ४ ॥

बृंहितं तेजसां पुञ्जं वायुमाकाशमेव च ।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ५ ॥

बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ६ ॥

तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेजःप्रदीपनम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ७ ॥

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ८ ॥

फलश्रुति 

सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडाप्रणाशनम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं दरिद्रो धनवान्भवेत् ॥ ९ ॥

आमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने ।
सप्तजन्म भवेद्रोगी जन्मजन्म दरिद्रता ॥ १० ॥

स्त्रीतैलमधुमांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने ।
न व्याधिः शोकदारिद्र्यं सूर्यलोकं स गच्छति ॥ ११ ॥

इति श्री सूर्याष्टकम् ।

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