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Yama Dwitiya Vrat Katha in Hindi – श्री यम द्वितीया व्रत कथा / भाई दूज व्रत कथा

Bhai Dooj Vrat Katha or Yama Dwitiya KathaPin

भाई दूज व्रत कथा (या भैया दूज व्रत कथा) एक पवित्र कहानी है जिसे भाई दूज त्योहार अनुष्ठानों के हिस्से के रूप में सुना या सुना जाता है। इसे यम द्वितीया कथा भी कहा जाता है। इसका वर्णन सनत कुमार संहिता में किया गया है, जहां ऋषि वलाखिल्य अन्य ऋषियों को यह समझाते हैं।

Yama Dwitiya Vrat Katha in Hindi – श्री यम द्वितीया व्रत कथा / भाई दूज व्रत कथा

ऋषि वालखिल्य बोले – “कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को यम द्वितीया कहते हैं। यम द्वितीया के पावन अवसर पर सायंकाल के समय यमदेव की पूजा-अर्चना करनी चाहिये। पूर्वकाल की कथा है एक समय श्रीयमुना महारानी नित्यप्रति यमदेव से प्रार्थना करने लगीं कि – ‘हे भ्राता! अपने सभी इष्ट मित्रों सहित मेरे गृह पर भोजन हेतु पधारिये।’ यमराज भी उनसे कह देते थे कि – ‘कल आऊँगा अथवा परसों आ जाऊँगा। हम कार्य में अत्यन्त व्यस्त रहते हैं इस कारण अवकाश नहीं प्राप्त होता।’

हे ऋषिगणों! एक दिन देवी यमुना ने हठपूर्वक यमदेव को निमन्त्रण दे दिया। यमुना जी के निमन्त्रण पर यमदेव कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को उनके घर भोजन करने पहुँचे। यमदेव ने अपने यमपाश से सभी प्राणियों को मुक्त कर दिया तथा अपने इष्ट गणों सहित यमुनाजी के घर पधारे थे। यमुनाजी ने यम का प्रेमपूर्वक आतिथ्य-सत्कार किया एवं नाना प्रकार के पाक एवं व्यञ्जन बनाये। यमुनाजी ने सुगन्धित तेलों से यम का अभ्यङ्ग किया, तदुपरान्त उवटन आदि करके स्वच्छ जल से स्नान कराया। स्नानोपरान्त यम को विभिन्न प्रकार के सुन्दर वस्त्र-अलङ्कार एवं चन्दन, माला आदि प्रदान किये। अनेक प्रकार के पक्वान्नों से स्वर्ण के थालों को सजाकर अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक यमराज को भोजन कराया। भोजनोपरान्त यमराज ने भी, अनेक प्रकार के वस्त्रालङ्कारों से देवी यमुना का पूजन किया।

तत्पश्चात् यमदेव ने अपनी बहिन देवी यमुना से कहा – ‘हे बहिन! आपकी जो भी मनोकामना हो माँगिये।’ यम के वचन सुनकर यमुनाजी कहने लगीं कि – ‘आप प्रतिवर्ष आज के दिन मेरे घर पर भोजन करने के लिये पधारा करें तथा जिन पापियों ने आज के दिन आपकी तरह अपनी बहिन के हाथ से भोजन किया हो, उन पापियों को आप अपने पाश से सदैव मुक्त करते रहें तथा जो बहिन के हाथ से इस प्रकार भोजन करें आप उन्हें सदा सुख-समृद्धि प्रदान करें, मैं आपसे यही वरदान माँगती हूँ।’

यह सुनकर यमदेव बोले – ‘हे सूर्यपुत्रि! जो तुझ में स्नान-तर्पण आदि करके बहिन के घर भोजन एवं उसका पूजन करेंगे, वे मनुष्य कभी भी यमलोक के द्वार का दर्शन भी नहीं करेंगे। वीरेश महादेव की इशानी दिशा में एक यमतीर्थ है, उसमें स्नान करके विधिपूर्वक पितर एवं देवताओं का तर्पण करके मनुष्य को श्रेष्ठ, एकाग्र चित्त से मौनपूर्वक स्थिरासन से सूर्य के समक्ष मध्याह्नकाल में निम्नोक्त नामों का जाप करना चाहिये – यम, निहन्ता, पितृराज, धर्मराज, वेवस्वत, दण्डधर, काल, भूताधिप, दत्तकृतानुसारी एवं कृतान्त। तदुपरान्त बहिन के घर जाये तथा बहिन भी आदरपूर्वक भाई को भोजन करावे एवं कामना करे कि – ‘हे भाई! में तेरी छोटी बहिन हूँ, इस पवित्र भोजन को यमदेव एवं यमुनाजी की प्रसन्नता के लिये आप ग्रहण करें।’ तत्पश्चात् वस्त्र-अलङ्कारों से बहिन को सन्तुष्ट करे। ऐसा करने वाले मनुष्य को स्वप्न में भी यमलोक का दर्शन नहीं होता। इस दिन राजाओं को भी बन्दीगृह में जितने भी बन्दी हों उन्हें अपनी बहनों के घर भोजन हेतु भेज देना चाहिये। आज के दिन मैं भी पापियों को नरक से मुक्त करूँगा तथा जो कोई राजे-महाराजे आज के दिन किसी को बन्दी बनायेंगे वे अवश्य ही मेरे दण्ड के पात्र होंगे।

यदि छोटी बहिन न हो तो ज्येष्ठ बहिन के ही घर जाकर भोजन करना चाहिये, यदि ज्येष्ठा भी न हो तो अपनी माँ की बहिन के यहाँ जाना चाहिये, कदाचित्‌ यह भी न हो तो काका, चाचा, ताऊओं में से किसी के घर जाकर बहिन के हाथ से भोजन करना चाहिये। यदि इनमें भी कोई न हो तो मौसी की पुत्री के घर जाना चाहिये, अन्यथा मामा की पुत्री के ही हाथ से भोजन करना चाहिये। यदि यह भी न हो तो गोत्र आदि की बहिन अवश्य होनी चाहिये। यदि अपने सम्बन्ध की भी कोई न हो तो मुँहबोली अथवा मानी हुयी बहिन के घर ही भोजन करना चाहिये। यदि ये भी सम्भव न हो तो गो, नदी आदि को ही बहिन मानकर, उनके समीप ही भोजन करना चाहिये। यदि ये भी न प्राप्त हों तो किसी वनिका अर्थात् वाटिका को ही अपनी बहिन मान ले।

हे देवि! यम द्वितीया के दिन अपने घर पर कभी भी भोजन नहीं करना चाहिये। जो दुराचारी लोग यम द्वितीया के दिन अपने घर पर भोजन करते हैं, वे नरक में पड़ते हैं। इस दिन तो प्रेमपूर्वक बहिन के ही हाथ से पुष्टिकर पदार्थों का सेवन करना चाहिये। इस दिन बहिन को विशेष रूप से दान देने चाहिये, श्रावण की द्वितीया को तो चाचा की पुत्री के हाथ से भोजन करना चाहिये। भाद्रपद की द्वितीया को मामा की पुत्री के हाथ से, तथा आश्विन की द्वितीया को मौसी की पुत्री अथवा बुआ की पुत्री के हाथ से भोजन करना चाहिये। किन्तु कार्तिक शुक्ल द्वितीय को अवश्य ही अपनी बहिन के हाथ से भोजन करना चाहिये।’ इस प्रकार यम द्वितीया के माहात्म्य का वर्णन करने के उपरान्त धर्मराज यमदेव अपनी संयमनी नामक पुरी को प्रस्थान कर गये।”

ऋषि वालखिल्य कहते हैं – “हे कार्तिक का व्रत करने वाले मुनिश्वरों! यम द्वितीया के दिन बहिन के घर पहुँचकर, उनके हाथ से भोजन करो। जो कुछ कहा गया है, इसमें सन्देह न करना, यह परम सत्य है। भगवान सूर्य ने तो यहाँ तक कहा है कि – ‘जो मनुष्य यम द्वितीया के दिन बहिन के हाथ का भोजन नहीं करता, उसके वर्ष पर्यन्त किये हुये सभी सुकृत नष्ट हो जाते हैं। जो कोई स्त्री यम द्वितीया के दिन भाई को अपने घर पर भोजन कराकर उसे पान खिलाती है वो कभी विधवा नहीं होती तथा न उसके भाई की आयु का क्षय होता है। जिस दिन द्वितीया तिथि अपराह्नकाल तक रहने वाली हो उस दिन ही भाई को भोजन कराना चाहिये। यदि अज्ञानतावश, मोहवश, विदेश में निवास के कारण अथवा बन्दी होने के कारण किसी ने बहिन के हाथ से भोजन नहीं किया हो तो वह यम द्वितीया की कथा का श्रवण कर बहिन के हाथ से भोजन करने का फल प्राप्त कर सकता है।’ इस प्रकार सनत्कुमार-संहिता में वर्णित यम द्वितीया की कथा सम्पूर्ण होती है।”

॥इति श्री यम द्वितीया व्रत कथा सम्पूर्णः॥

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